मैं पास अभी सिर्फ शब्द हैं ।
जब मै अकेला हो जाता हूँ,
तुम साथी बनकर आते हो ।
जब अंधेरा छाने लगता है,
तुम दीपक एक जलाते हो ।
जब मन प्रश्न एक पुछता है,
प्रत्युत्तर तत्क्षण बताते हो ।
जब आत्मा कुछ माँगती है,
तुम गठरी खोलकर देते हो ।
जब उद्देश्यहीन मैं भटकता हूँ,
तुम दूर खङे होकर बुलाते हो ।
जब भ्रम कोई मन में होता है,
तुम सत्य का दर्शन कराते हो ।
0 टिप्पणी
एक टिप्पणी भेजें
<< चिट्ठे की ओर वापस..