30 अप्रैल, 2005

रुपहली – कहानियाँ

देख रही थी आँखे वही कहानी,
जाने कैसे सुना रही थी जुबानी,
वही राजा, वही रानी, वही कहानी,
आँखे नम थी या हवा की नमी ।

राजा के महलों में, हँसते सपने,
रचे थे कुछ खुद तो कुछ औरों ने,
तभी तो दूर से दिखते थे अपने,
कुछ बाँटा हँसी, तो कुछ दुखों ने ।

उन्हीं कहानियों पर क्यों जाती आँखे,
मन की कङियाँ क्यों जाती है बँधने ,
क्या जिन खोजा तिन पाईंया कहने ,
या सुखांत होने की आस रखे मन में ।