मधुमक्खी
मधुमक्खी का एक छत्ता था ,
मधुघट वहाँ पर एक रक्खा था ।
पता नहीं कैसे आग लगी वहाँ,
खोने लगा फिर सबका जहां ।
सफेद मोम का दिखने लगा डेरा,
मगर छोङ न सके फिर वो बसेरा ।
मक्खी नहीं, सब डंक वाले मधुमक्खी,
फिर रसों से मधुघट भरते जाऐँगे ।
कोई स्वार्थ नहीं, मधु घानी चलाऐंगे ,
सब मिलकर गुँजनेवाला धुन गाऐंगे ।
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