मुर्गी माँ
छोटे छोटे नन्हें बच्चे,
कुछ झुठे, कुछ सच्चे,
ठुमक – ठुमककर चलते हैं,
बीच में इठलाती मुर्गी माँ ।
मिट्टी-बालु खोद-खोदकर,
दाना-कीङे ढूँढ-ढूँढकर,
सिखाती जाती चूजों को,
खुद कम खाती मुर्गी माँ ।
कुछ कमजोर छोटे चूजे,
फँस जाते झाङी के पीछे,
दौङकर खोज निकालती उनको,
फिर गिनती करती मुर्गी माँ ।
देखकर आते दूर कुत्ते को,
छिपाती कोने में बच्चे को,
जोर-जोर से चिल्लाकर तब,
सावघान करती मुर्गी माँ ।
जव कोई उसके चुजे पकङे,
या फिर पिजङे में ही जकङे,
पता नहीं कहाँ से आती ताकत,
तब मुर्गा बनती मुर्गी माँ ।
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