प्रेमचंद - 125 वाँ जन्मदिवस
हिन्दी के कथा-सम्राट प्रेमचंद के 125 वाँ जन्मदिवस ( 31 जुलाई) के अवसर पर विश्व के कोने-कोने में फैले हिन्दी ब्लागर, अपने-अपने आसन पर बैठे ही आपस में छोटा-मोटा कुछ आयोजन कर सके तो कैसा रहेगा ।
हमारी सरकार, प्रेमचंद के जन्मग्राम लमही, जो कि वाराणसी के पास है, में वर्षभर चलने वाले कार्यक्रम आयोजित करने जा रही है । यों लखनऊ और गोरखपुर में भी क्रार्यक्रमों की तैयारियाँ चल रही है । चले भी क्यों नहीं, प्रेमचंद ने जीवन के कुछ वर्ष जो यहाँ भी बिताए थे ।

लेकिन लमही में उपस्थित होंगे सैकड़ों साहित्यप्रेमी जिनमें होंगे राजेन्द्र यादव , नामवर सिंह, दूधनाथ सिंह, श्री लाल शुक्ल आदि । वहाँ के भव्य सरकारी कार्यक्रमों में मुलायम सिंह यादव एवं सूचना एवं प्रकाशन मंत्री जयपाल रेड्डी की सरकारी घोषणाएँ भी होंगी । कितनी घोषणाएँ पूरी होंगी कितनी पेन्डुलम की तरह लटकेगी , यह तो कालचक्र ही बताएगा । यूँ संभावित घोषणाएँ हैं, एक राष्ट्रीय स्मारक और मुंशी प्रेमचंद शोध एवं अध्ययन संस्थान की स्थापना । लेकिन आवश्यक प्रकियाएँ है - सरकारी घोषणा, भवन निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण, राशि आवंटन, फिर उस आवंटन में केन्द्र और राज्य सरकार का अंश, सबसे महत्वपूर्ण है इन सबके लिए दफ़्तरो की साहित्यिक पेपरयात्रा जो कि पैसेंजर ट्रेन की तरह सरकती है । इन कामों के लिए ठेका किसको मिलेगा यह तो भीतरी बात है । अगर प्रेमचंद का प्रेमकंद बन जाए तो आश्चर्य काहे का ।
इस अवसर पर हमलोग असरकारी रूप से महान कथाकार को कुछ याद करें, कुछ उनके लेखों को छुएँ, कुछ उनके जीवन को झाँके, कुछ पढ़े , कुछ कड़ियाँ दें तो शायद आप लोग मुझसे राजी होंगे ।
मित्रगण, मैं भी आपकी तरह ही प्रेमचंद की कहानियों एवं उपन्यासों का दीवाना हूँ, जो समकालीन हिन्दी साहित्य एवं समाज का आइना है।
आइए न, इस आइने में हम हिन्दी प्रेमी आपस में बहुत साहित्यिक चर्चा न ही सही, कुछ गपशप ही करें ।
9 टिप्पणी
प्रेमचंद की कई कहानियां याद आ रही हैं। नमक का दरोगा,ईदगाह,बड़े भाई साहब, गुल्ली-डंडा,पंच परमेश्वर आदि। ईदगाह का पुनर्पाठ किसी पत्रिका में मैंने पढ़ा था अभी नेट पर ही।हामिद जो चिमटा खरीदता है सब शुरुआत में उसकी खरीद का माखौल उड़ाते हैं पर बाद में वह चिमटा सब पर हाबी हो जाता है।आज जब बाजार हमें हमारी जरूरतें बता है तब यह कहानी एक राह दिखाती है कि हम बाजार की चकाचौंध से बिना प्रभावित हुये कैसे अपनी औकात में रहकर जरूरतें पूरी करने का विश्वास बनाये रख सकते हैं।
प्रेमचन्द जी की रचनायें और उनकी शैली सचमुच गजब की है , किन्तु मुझे उससे भी ज्यादा उनकी जीवन-शैली लगी जो अविरल रचनाकर्म और अन्य उद्यमों मे लगी रही ।
अनुनाद
प्रेमचन्द जी ने जो भी कुछ लिखा है किसी ना किसी नौकरी पर रहते हुवे लिखा है. आश्चर्य होता है जिन्दगी भर अभावो से जुझते रहनेवाला. , घर गृहस्थी मे फंसा हुवा ये लेखक अपनी उच्च कोटी की इन रचनाओ के लिए समय कैसे निकाल पाता था.
प्रेमचन्द जी ने अपनी रचनाओ मे जिवन के हर पहलु को छुवा है. बचपन के लिए गुल्ली-डंडा, बडे भाई साहब , ईदगाह है, तो बुढापे के लिए बुढी काकी, युवावस्था के लिए तो ना जाने कितनी सारी.
उन्होने एक ओर प्रेम पच्चीसी लिखि , दुसरी ओर सोज़ ए वतन लिखी. जात-पात ,धर्म अंधविश्वास पर करारी चोट की. उनकी रचना के पात्र देखिये, आज भी आपको अपने आसपास कितने होरी मिल जायेंगे. कितने ही पंडित मोटेराम मिल जाएंगे.
लिखने के लिए तो बहुत कुछ है, खाली-पिली मे अगला चिठ्ठा प्रेमचंद के नाम !
प्रेमचंद की कहानियां यहां पढ़िये:
http://www.webdunia.com/literature/story/
इस पृष्ठ के आखिर में है प्रेमचंद की कहानियों की कड़ियाँ।
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मैं कह सकता हूं कि प्रेमचंद की 'गोदान' मेरी पसंदीदा किताब है. प्रेमचंद का हर शब्द मुझे प्यारा है और उनके आदर्शवाद के तो क्या कहने. लेखन में उनकी कोई सीमाएं नहीं थीं लेकिन समाज में एक लेखक की सीमाओं से क्षुब्ध प्रेमचंद ने अपने इस उपन्यास में बिना आदर्शवादी विकल्प के सीधे-सीधे यथार्थ पेश मुझे चौंका दिया. यह मेरे प्रिय लेखक की अपने आप से बग़ावत थी जो गाहे-बगाहे मुझे आज भी झकझोरती रहती है.
हम सब के प्यारे प्रेमचंद के
साहित्य का खजाना
like tumbler and tipsy days hopefully we will remain in high spirits. well, good day
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प्रेमचंद का जन्मदिवस याद दिलाने के लिए घन्यवाद। उनकी कहानियाँ दिल में बसी हुई हैं।
अनुराग
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