01 जुलाई, 2006

कुछ होंठ मुस्काते हैं ।

कुछ होंठ मुस्काते हैं,
थिरकते हैं कुछ बातें,
बातों में मिसरी घोल,
कहते हैं,कुछ अनमोल ।

रिश्तों-नातों से परे,
बिना कोई बंधन के,
बिना वादे-फरियाद के,
प्रीत का बस एक डोर ।

यूँ ही न आती है यह,
तपना पड़ता है उन्हें,
तपिश जीवन सहकर,
परहित में अब जीते हैं ।

छोड़ जाते है अमिट,
एक स्फुर्त मुस्कान ।
सम्मोहित मानवमन को,
उनका स्मरण भी काफी है ।